मास्क, गॉगल्स और विशेष सूट के बावजूद डॉक्टर्स वायरस से बच नहीं पाए, यहां युवाओं को भी वेंटिलेटर्स की जरूरत पड़ रही

मिलान. मिसेज एम मिलान में रहती हैं। उम्र 70 साल है और वे कोरोना पॉजिटिव हैं। इलाज के बावजूद जब उनकी हालत में सुधार नहीं आया तो डॉक्टर ने उनकी बेटी को कॉल कर उनकी खराब तबीयत की जानकारी दी। बेटी ने दूसरी तरफ से जवाब दिया- पापा भी कोरोना पॉजिटिव हैं और उनका इलाज शहर के दूसरे हॉस्पिटल में चल रहा है। पति-पत्नी एक-दूसरे से बहुत दूर एक महामारी से लड़ रहे हैं और बेटी भी उन्हें देख नहीं पा रही है। यह महज एक घर की कहानी है, लेकिन ऐसी कहानी इन दिनों इटली के कई घरों में देखी जा रही है। मिलान में इमरजेंसी मेडिसिन स्पेशलिस्ट फेडरिका (34) ऐसे कई किस्सों की गवाह हैं।


इटली में जब यह महामारी अपने शुरुआती दौर में थी, तभी से फेडरिका अपने हॉस्पिटल के इमरजेंसी रूम में कोरोना पॉजिटिव लोगों का इलाज कर रही हैं। फिलहाल घर पर क्वारैंटाइन पीरियड बीता रही हैं, क्योंकि कोरोना संक्रमितों के बीच रहते-रहते सभी सावधानियां बरतने के बावजूद वे भी संक्रमित हो गईं। वे बीते कुछ दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि, “शुरुआत में इटली के लोडी और कोडोग्नो शहर इस महामारी की चपेट में आए थे। इन शहरों के हालात से हम बहुत कुछ सीख चुके थे। हमें यह पता था कि यह जल्द ही हमारी ओर भी रूख करेगा और फिर ठीक एक सुनामी की तरह इसकी पहली लहर हम तक पहुंच गई।”


हॉस्पिटल के इमरजेंसी रूम को दो हिस्सो में बांट दिया गया- एक बड़ा हिस्सा कोरोना के मरीजों का, दूसरा हिस्सा अन्य मरीजों के लिए था
फेडरिका कहती हैं, “कोरोना के फैलाव को देखते हुए हमारे हॉस्पिटल के इमरजेंसी रूम को दो हिस्सों में बांट दिया गया था- एक बड़े हिस्से में वे लोग होते थे, जिनमें कोरोनोवायरस के लक्षण मिल रहे थे और दूसरी तरफ एक छोटा हिस्सा, जहां अन्य मरीजों को रखा जाने लगा। धीरे-धीरे मरीजों की संख्या बढ़ने लगी। कारण एक जैसे थे- खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ। हमारी तैयारी बहुत अच्छी थी, लेकिन इसके बावजूद हर दिन हॉस्पिटल में भीड़ बढ़ती जा रही थी। हमारे पास जगह कम पड़ने लगी। हॉस्पिटल के अन्य डिपार्टमेंट्स में हर दिन थोड़ी-थोड़ी जगह बनाई जाने लगी।”



इटली के ब्रेसिया शहर के स्पेडाली सिविल हॉस्पिटल में मरीज की मदद करते एक डॉक्टर।


फेडरिका बताती हैं, “मामले बढ़ते गए और इमरजेंसी रूम में शिफ्ट में वर्किंग शुरू हो गई। एक-एक शख्स 12 से 13 घंटे काम कर रहा था। इमरजेंसी रूम में घुसने से पहले उन्हें मास्क और विशेष तरह के गॉगल्स दिए जाते। मास्क तो इमरजेंसी रूम से बाहर आते ही डिस्पोज कर दिए जाते, लेकिन गॉगल्स को हमेशा साथ ही रखना होता था।”


कुछ मरीज गुस्सा करते, कुछ रोते रहते और हम उन्हें थोड़ी राहत देने की कोशिश करते रहते
फेडरिका बताती हैं कि, “बूढ़े, वयस्क, युवा और बच्चे सभी इसकी जद में हैं। सभी के लक्षण एक जैसे होते हैं। कई मरीज गंभीर होते हैं, इनमें से कुछ को यह भी पता नहीं होता है कि वे कम ऑक्सीजन ले पा रहे हैं। सभी बहुत डरे हुए होते हैं। वे जानते हैं कि इस वक्त बीमार होना बहुत बड़ा जोखिम है, खासकर अगर वे बूढे हैं तो डर और बढ़ जाता है। जब आप उनसे बात करते हैं, तो कुछ रोने लगते हैं, कुछ बहुत गुस्सा भी करते हैं। मेरी एक ही कोशिश रही कि मैं उन लोगों को कुछ राहत दे सकूं। मैं उन्हें बताती थी कि सबसे अच्छी बात यह है कि आप इस समय हॉस्पिटल में हैं और आपके पास सांस लेने के लिए ऑक्सीजन सपोर्टर है।”


जो कोरोना पॉजिटिव युवा मजबूत और स्वस्थ थे, कुछ दिनों बाद उन्हें भी वेंटिलेटर्स की जरूरत पड़ने लगी
मार्च के पहले हफ्ते में ही फेडरिका ने 34 साल के एक भारतीय मरीज को हॉस्पिटल में देखा था। वे बताती हैं कि, "वह कोरोना पॉजिटिव था, बुखार भी तेज था। उसे हॉस्पिटल में भर्ती किया गया, लेकिन उसकी हालत ज्यादा खराब नहीं थी। उसे डिस्चार्ज कर दिया गया। 3 दिन बाद मैंने उसे फिर से इमरजेंसी रूम में ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ देखा। मैं यही सोच रही थी कि वह मेरी उम्र का ही है, लगभग ठीक हो चुका था, फिर वह इतनी बुरी हालत में कैसे पहुंच गया?”